2020 सिर्फ कड़वी हक़ीकतों के लिए नहीं, मीठे-प्यारे सबक के लिए भी याद किया जाएगा। नया साल फिर आएगा, नई उम्मीदें, नई खुशियां, नई सौगातें, नए सपनें लिए हुए।
प्यारे दोस्तों,
जीते हुए लोगों से इतिहास बनता हैं, लेकिन हारे हुए लोग जब दोबारा उठकर जीतते हैं तो कहानी बनती है। 2020 के आखिरी पायदान पर खड़े हम सब, हार कर जीते हुए लोग हैं। और हम सब के पास सुनाने के लिए वो बेशुमार कहानियां हैं जो आने वाली तमाम नस्लें सुनकर ज़मानों तक हैरान हुआ करेंगी। हमनें अपनी ज़िंदा आंखों से इंसानी तारीख़ का वो हिस्सा देखा है जिसपर पहले यकीन करना भी शायद मुश्किल होता। एक ऐसा बेहिस दौर, जब नज़दीकियां गुनाह हो गयी थीं, गले मिलना जुर्म था और हर दूसरे दिन अलग-अलग शहरों से अपनों के गुज़र जाने की ख़बर इस तरह आती थी जैसे अख़बारों में शहरों का तापमान आता है। हमने अपने कितने ही दिल-अज़ीज़ों के चेहरे आख़िरी बार नहीं देखे। उनकी कब्रों पर मिट्टी नहीं दी। उनकी अर्थियों को कांधा नहीं दे पाए। महीनों तक खिड़कियों से उतरती धूप नहीं देखी। दरवाज़ों से आती-जाती आहटें नहीं महसूस कीं। अपनों से गले मिलकर रोए नहीं। गलियां उदास थीं, बाज़ार सूने और चौराहों के चायख़ाने अपनी लुटी हुई रौनक को सड़क से गुज़रती एंबुलेंस की आवाज़ सुनते हुए याद करते थे। अपने वक्त की बेचैनियों को समेटे हुए हम गुज़रे हुए लोगों को याद करते हुए राशन की उदास कतारों में खड़े रहे।
बेशक, ये साल नाउम्मीदियों का साल था, मायूसियों का साल था लेकिन अपने आखिरी दिनों में जब ये साल किसी शर्मिंदा मेहमान की तरह जाते हुए घर की चौखट पर खड़ा है तो दरवाज़े तक आकर थोड़ा सा मुस्कुराकर विदा करने में क्या हर्ज है।
दिसंबर की आखिरी रात हर साल जब सर्द हवाओं और मुबारकबादों के बीच ‘नया साल’ हमारी ठंडी हाथेलियों पर रखती है, तो जेबों में रंगीन उम्मीदें भी सरका देती है। उम्मीद बेहतर रिश्तों की, अच्छी ज़िंदगी की, ज़्यादा आमदनी की, बढ़े हुए मुनाफ़े की। हम सोचते हैं कि इस साल सब ठीक हो जाएगा, क्योंकि यही सोचना ज़िंदा होने की शर्त है। मौत हमेशा ज़िंदगी से बेहतर होती है क्योंकि ज़िंदगी के साथ उम्मीद होती है। मौत जब तक गले नहीं लगाती, उम्मीद ज़िंदगी का हाथ थामें उसके कानों में सरगोशियां करती है। हौले से कहती है कि ज़हन में धुंधले पड़ चुके उस पुराने चेहरे से एक आख़िरी मुलाक़ात अभी बाकी है। वो क़दम जो उम्र के किसी चौराहे पर दूसरे रास्ते चल दिए थे, किसी रहगुज़र पर फिर से मिलेंगे, फिर कुछ दूर साथ चलने के लिए। वो आख़िरी ख़्वाहिश जो ज़िम्मेदारियों के शोर में दबकर अनसुनी हो गयी, किसी हैरान सुबह यूं ही पूरी हो जाएगी। उम्मीद हमें ज़िंदा रखती हैं इसीलिए हर साल हम उम्मीद करते हैं कि ये साल बेहतर होगा। हमने इस साल से भी उम्मीद की थी लेकिन अफ़सोस कि 2020 उस वबा के नाम हो गया जिसने पूरी दुनिया की तस्वीर बदल कर रख दी। हज़ारों नौकरियां छूट गयीं, तमाम कारोबार ठप्प हो गए, बेहिसाब चेहरों पर बेशुमार मायूसियां लिख दी गयीं। शादियां टूटीं, फ़ाके हुए। बुझी हुई आंखों में शहर के सपनें लिए लोग, पांव मे छाले लपेटे घरों की तरफ़ लौटने लगे। कितने तो ऐसे थे जो नामुमकिन यात्राओं पर निकले थे सिर्फ इसलिए कि अपनी चौखट पर मर सकें। वो पहुंचे या नहीं, ज़माने को इसकी भी ख़बर कहां। हम सब अपनी छोटी-बड़ी लड़ाइयों में हारते रहे। लेकिन क्योंकि मैं ये लिख रहा हूं, और आप पढ़ रहे हैं – इसका मतलब हम ज़िंदा हैं और हम में अबतक थोड़ी सी उम्मीद बाक़ी है। लेकिन मैं सिर्फ ये नहीं लिखना चाहता कि ये गुज़रता हुआ साल बहुत बुरा था, ज़लिम था, तकलीफ़देह था बल्कि ये भी बताना चाहता हूं कि इस साल ने हमें जो सिखाया वो ज़िंदगी के सबसे ज़रूरी सबक़ में से एक था।
कोई शख्स हो, कोई रिश्ता हो या कोई साल, जिसे हम आख़िरी बार गले लगाते हैं, उसे गले लगाना ज़रूरी होता है।
साल 2020 हमें एक सख़्तदिल उस्ताद की तरह हाथ में छड़ी लिए हुए मिला। सुर्ख आंखों में गुस्सा और कुछ मुश्किल सवालों के साथ। उसने जो पढ़ाया बेशक कठिन था, लेकिन क्लास ख़त्म होते-होते ये एहसास हो गया कि जिस रफ़्तार से हम दुनिया की रेस में भाग रहे थे, वो शायद, कुछ ज़्यादा ही तेज़ थी। ज़रूरत से काफ़ी ज़्यादा। इसने हमें वक्त दिया कि कुछ देर दौड़ते हुए रास्तों के किनारे छांव में रुककर कुछ पल सुस्ता सकें। और सोचें कि जिन रास्तों पर हम बेतहाशा दौड़ रहे हैं वो कहीं खत्म भी होते हैं क्या? कदमों से गुलज़ार रहने वाली सड़कें जब सूनी हो गयीं, मंदिर-मस्जिदों पर जब ताला लग गया, दूर दुनिया के बड़े-बड़े बाज़ार जब खाली हो गये तो पता चला कि ज़िंदा रहना कितनी बड़ी नेअमत है। और ज़िंदा रहने के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है। ये भी एहसास हुआ कि हर दिन आसमान छू लेने के नए-नए दावे करते हुए इंसान की हैसियत कुदरत के एक वायरस के आगे क्या है। कुछ भी नहीं। दूर से दिखते क्षितिज की तरफ़ बेतहाशा और बदहवास दौड़ते हुए इंसान को ये साल एक स्पीड ब्रेकर की तरह मिला।
मैं जिस घर में रहता हूं वहां नए साल की कई पार्टियां मना चुका हूं। काफ़ी वक्त गुज़ारा है यहां लेकिन इस घर को इतने कऱीब से मैंने लॉकडाउन में ही देखा। महानगरों में मेरी ही तरह, न जाने कितने लोग होंगे जिन्होंने इस फ़ुर्सत के पलो में घर के कई हिस्से पहली बार देखे होंगे। तीन कमरे और दो बालकनी वाले मेरे घर में, धूप सुबह किस दीवार से उतर कर शाम को फर्श के किस चौखाने तक पहुंचती है, मैंने इसी दौरान देखा। बालकनी के किनारे चिड़िया का घोंसला रोज़ तिनका-तिनका कैसे बनता है, मैंने देखा। इतने सालों में मैंने पहली बार महसूस किया कि रसोई में बर्तन धोने का सिंक ज़रा ऊंचा है। शायद मुझे ये कभी पता नहीं चलता कि घर में जो रोज़ाना बर्तन धोता है उसे कितनी मुश्किल होती होगी।
साल 2020 जाते-जाते हमें सिखा गया कि जब सब कुछ ख़त्म हो जाता है, सब कुछ बीत जाता है तब हमें चाहिए होता है एक जाना-पहचाना कंधा जिस पर सर टिका सकें। और रोते-रोते अपनी ग़मों के ब्योरे दोहरा सकें। आख़िरी में चाहिए होते हैं वो चेहरे जो चुपचाप ख़ामोशी से हमारी कहानी सुन सकें। अपनी एहमियत, अपनों की अहमियत, ज़िंदगी की एहमियत कितना कुछ सिखा गया साल 2020 हमें। हमारे वो अपने, जो हमेशा आसपास थे, लेकिन फिर भी हमारे लिए गायब थे वो अचानक इस वक्त कितने क़रीब हो गए। जैसे, दीवार पर लटकी तस्वीर सीधी है या नहीं ये देखने के लिए अक्सर तस्वीर से दूर जाना पड़ता है। ज़िंदगी की कुछ हक़ीकतें दूर से साफ़ दिखाई देती हैं, नज़दीक से नहीं।
गुज़रता हुआ ये साल 2020 हमारी ज़िंदगी में उसी तरह आया। ज़िंदगी से सबकुछ छूटने लगा, दूर जाने लगा। और इन्हीं दूरियों में हम साफ़-साफ़ देख पाए कि हमारे इर्द-गिर्द कितनी ख़ूबसूरत दुनिया थी, जिसे हम नज़रअंदाज़ करते रहे। मास्क ने बताया शहर की सड़क पर खुलकर सांस लेते हुए चलने का मतलब क्या था। वीडियो कॉलिंग ने समझाया कि किसी मज़ेदार बात पर दोस्त के कंधे पर हाथ मारने का लुत्फ़ क्या था। और दो गज की दूरी ने एहसास दिलाया कि महीनों बाद मिले किसी अपने को गले लगा लेना का मज़ा क्या था।
2020 सिर्फ कड़वी हक़ीकतों के लिए नहीं, मीठे-प्यारे सबक के लिए भी याद किया जाएगा। नया साल फिर आएगा, नई उम्मीदें, नई खुशियां, नई सौगातें, नए सपनें लिए हुए। लेकिन नए साल की खुशी की चमक में, हम उस सबक को न भूलें जो हमने बहुत मुश्किल से सीखा है। क्योंकि तारीखें आती-जाती रहेंगी, दीवारों पर बदलते हुए कैंलडरों की लाल तारीखें छुट्टियां बताती रहेंगी, जीत के जश्न त्यौहारों में बदलते रहेंगे। लेकिन कब हमने ज़िंदगी को इतने करीब से देखा था, ये कहीं दर्ज नहीं होगा।
आने वाले साल से पूरी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाइये लेकिन एक बार शर्मिदंगी से सर झुका कर वक्त की चौखट पर खड़े 2020 को भी जाते-जाते आख़िरी बार गले लगा लीजिए। इसलिए भी, क्योंकि कोई शख्स हो, कोई रिश्ता हो या कोई साल, जिसे हम आख़िरी बार गले लगाते हैं, उसे गले लगाना ज़रूरी होता है।
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7 comments
Beautifully Written Jamshed 😊
वाकई में ये साल कड़क मिज़ाज उस्ताद ही रहा
ये कमाल का खत है, जिससे हर कोई इत्तेफ़ाक़ करेगा। बर्तन की सिंक की ऊंचाई हो या धूप को दीवार से उतरते देखना या अपनों को खोना। बहुत शुक्रिया लिखने के लिए। पढ़कर ऐसा लगा जैसे अपनी ही कहानी हो। शायद ये हम सबकी कहानी है, ये साल दिखा गया कि हम उतने अलग भी नहीं है। सब एक सा ही महसूस करते हैं 🙂
Bohot he Sunder likha hai, ye saal ka sabne daat ke mukabla kiya hai.
Beautifully expressed.
Heart touching ❤️❤️👌👌👌👌👌Sir
M.k. khan@ very beautiful ya i hopes 2021 will be an amazing or successful for you and your family and friends and to the all world inshallah ok thanks and TC
बहुत सुंदर लिखा सर!!
इस साल ने मुझे सिखलाया की जिस खयाली दुनिया में हम अक्सर रहते है वो सच नहीं है ,हमारी दुनिया तो हमारे अपने है।इस साल ने जीवन की सरलता बतलाई- जब तक जिंदा हो लगे रहो, कर्म करते रहो ,भविष्य की योजना बनाना ज्यादा फायदेमंद नहीं आज की चिंता करो और मौत जो अटल सत्य है उसे स्वीकार करो।
इसलिए मैं भी इस साल को गले लगाते हुऐ विदा करना चाहता हूं।
सर क्या मैं अपनी रचनाएं सांझा कर सकती हूं