किसी प्यारी चिड़िया से मोहब्बत की है आपने? मैंने की है अपने बगीचे में फुदकने वाली सनबर्ड (purple sunbird) से! पीली-हरी, छोटी सी चिड़िया, या शायद गहरी नीली, जामुनी चमक वाली चिड़िया से। और हर पहली नज़र के इश्क़ की तरह इसको नोटिस करने और फिर इसके प्यार में पड़ने से पहले मुझे पता ही नहीं था कि ये है कौन?
हाँ पौधों में पानी डालते हुए, मिट्टी की गुड़ाई करते हुए, पेड़ से सूखे पत्ते चुनते हुए इसकी आवाज़ सुना करती थी लेकिन सूरत से अनजान थी। फिर एक दिन अचानक एक छोटे से पौधे में, छोटा याने कोमल से तने वाले पेंटा के पौधे में मुझे एक प्यारा सा घोंसला नज़र आया। ये अधबना घोंसला था। याने ये इशारा था कि कोई जोड़ा है, जो खुश-खबरी देने वाला है!
मेरे कानों में तो दादरे सोहर गूंजने लगे- “सुनैयना के हरस अपार सिया को जनम भयो…”
अगले दिन बगीचे में पहुंची तो घोंसला और ज़्यादा बन चुका था और वहीं पास में पेन्टा के फूल पर हमिंग बर्ड की तरह एक जगह पंख फड़फड़ाते हुए एक गहरे नीले याने जामुनी से चमकदार रंग का पक्षी नज़र आया। पतली नीचे की ओर मुड़ी हुक्ड चोंच स्ट्रॉ की तरह फूल से रस ले रही थी। मिठास जैसे मेरे गले उतरने लगी थी। सांस रोके देखती रही कि पास ही नन्ही सी हरी पीली चिड़िया दिखाई दी जिसने एक तिनका घोंसले में पिरो दिया।
ये अलग अलग रंग का जोड़ा कैसे?
मैंने जल्दी से इंटरनेट में खोजबीन की तो सारी कहानी समझ आ गई। जैसा हर पशु पक्षी में देखा जाता है नर पक्षी ज़्यादा आकर्षक होते हैं वैसे ही यहाँ भी था। याने चमकदार जामुनी नीला था मेल सनबर्ड (Cinnyris asiaticus) और मटमैले पीले और हल्के रंग की थी मादा चिड़िया।
इस सुंदर सी चिड़िया से उस पहली मुलाक़ात के बाद मैंने ध्यान दिया कि ये तो बड़ी संख्या में मेरे आसपास नज़र आती हैं। हैरान हूँ कि अब तक कैसे नहीं नज़र पड़ी।
जानती हूँ कि मैं उस मासूम जोड़े की निजता का हनन कर रही थी, ज़बरदस्त दखल दे रही थी उनकी प्राइवेसी में लेकिन मन मानता ही न था। प्यारी सनबर्ड (purple sunbird) को मेरे बगीचे के मिट्टी के कसेरों से पानी पीते, खेलते देखने का लालच मुझे मजबूर कर देता था।
तेज़ आवाज़ करने वाले ये पंछी कई बार झुंड में भी दिखाई देते हैं। क्यूंकी ये ज़्यादातर फूलों के रस पर जीते हैं इसलिए इनका मेटिंग सीजन फूलों के खिलने वाला मौसम ही रहता हैं याने सितंबर अक्टूबर से लेकर मार्च तक। अब मेरा ज़्यादातर समय बगीचे में बीतने लगा। मैं घंटों बैठे किसी जोड़े को तिनका जोड़ते और किसी नर पक्षी को अपनी प्रिया को रिझाते देखती रहती। कैसे पंख फड़फड़ा कर, शरीर को तान कर और गले से लंबी सी आवाज़ निकाल कर वो सारे जतन कर डालता।
जानती हूँ कि मैं उस मासूम जोड़े की निजता का हनन कर रही थी, ज़बरदस्त दखल दे रही थी उनकी प्राइवेसी में लेकिन मन मानता ही न था। प्यारी सनबर्ड (purple sunbird) को मेरे बगीचे के मिट्टी के कसेरों से पानी पीते, खेलते देखने का लालच मुझे मजबूर कर देता था। सारे दिन उन उंगली बराबर जीवों को ताकते हुए मैंने जाना कि घोंसला बनाने में नर का योगदान बहुत कम था और मादा घोंसले को मकड़ी के जाल से पिरो कर बड़ी सफ़ाई से अपना नीड़ बना रही थी।
थोड़े दिनों बाद उस घोंसले में तीन गहरे भूरे अंडे नज़र आए। किसी चॉकलेट की तरह… चमकीले अंडे देख कर मन रीझ गया। इंटरनेट की जानकारी के हिसाब से तो ये पक्षी ज़्यादातर दो अंडे देते हैं लेकिन मेरे बगीचे के घोंसले में तीन थे। शायद दुआएं यूं ही असर करती होंगी।
अब मैंने घोंसले के पास जाना बंद कर दिया। बड़े लोगों का कहा याद आया कि चिड़िया (purple sunbird) ने मुझे वहाँ देखा तो शायद बच्चों को त्याग देगी। हालांकि एक दो बार दोनों चिड़ा चिड़ी आस-पास नहीं थे तो जल्दी से उनकी तस्वीर खींच ली थी। जानती थी कि कल को ये घोंसला खाली होगा, तब कम से कम उनकी याद तो रहेगी मेरे पास।
कुछ दिनों में अंडों से कुलबुलाते से बच्चे निकल आए। हर दिन वो बच्चे कुछ नया सीखने लगे और आखिर माँ बाप (purple sunbird) ने उन्हें उड़ना भी सिखा दिया।
मुझे लगा जैसे कोई अनमोल चीज़ खो गई हो … कुछ कमी सी हो गई थी। सच तो था… वो आवाज़ नहीं थी, घोंसले में आवाजाही नहीं थी। उदासी घर कर गई थी, शायद और गहराती की एक रात अपने कमरे में अपने रेक्लाइनर पर बैठे लैपटॉप पर कुछ लिख रही थी कि लगा पीछे कुछ आहट हुई। रात के कोई दस बजे होंगे। चौंक के पलटी तो खिड़की की ठीक बाहर रखे एक चम्पा याने प्लुमेरिया की डाल पर एक छोटी सी चिड़िया (purple sunbird) बैठी मुझे देख रही थी।
मैं हैरान रह गई थी… लेकिन उसके बाद कोई एक हफ़्ते शाम सात बजे के क़रीब ठीक उसी जगह, उसी डाल पर वो सनबर्ड (purple sunbird) आकर बैठने लगी। एकदम शांत, पीली हरी… याने मादा चिड़िया। मैंने रात को और फिर दिन में भी बहुत खोजा। अबकी मुझे न आसपास नर दिखा न कोई घोंसला।
मुझे लगा जैसे कोई अनमोल चीज़ खो गई हो … कुछ कमी सी हो गई थी। सच तो था… वो आवाज़ नहीं थी, घोंसले में आवाजाही नहीं थी। उदासी घर कर गई थी…
ये कौन थी? वही चिड़िया (purple sunbird)? या कोई और? या उन अंडों से निकले बच्चों में से कोई एक? नहीं जानती… लेकिन पता नहीं क्यूँ मुझे लगता रहा कि ये मुझे जानती है… मैं उस ख़ामोश चिड़िया के एवज में गुनगुनाती रही- मेरा तुझसे है पहले का नाता कोई, यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई…
यह भी देखें –
Oedipus and I: Murder on a Mumbai Terrace and Brown Black Kites
2 comments
सच्ची वो अंडे चॉकलेट बॉल से लग रहे हैं!
और वो मम्मी बर्ड वापस आई होगी बताने कि हम सुखी हैं….थैंक्यू कहने
🙂
अंडा देखकर मन रीझ गया। कितना सुन्दर। प्रकृति ने कितनी ख़ूबसूरती से रचना की है।