By Taruna Bhatt
“आज फिर से वही कहानी, बिल्कुल नहीं…” माही ने थोड़ा नाक सिकोड़ते, दोनों होंठ आपस में मिलाकर टेढ़ी मेढ़ी शक्ल बनाकर नानी की गोद में सर रखते हुए कहा… माही सालों से लगातार नानी की कहानियों की दुनिया में अपना काल्पनिक घर बना चुकी थी, उस घर की हर एक ईंट नानी की नई कहानी होती… नानी ने माही के घुंघराले बालों में अपनी उंगलियां घुमाते हुए कहा – “आज एक सच्ची कहानी सुनाऊंगी…”
फिर आँखों की पुतलियों को दीवार के एक कोने में जमा कर उन्होंने बताना शुरू किया – “सालों पहले की बात है, हमारे घर के ठीक सामने वाली सड़क के उस पार बांस की एक छोटी सी झोंपड़ी बनी थी। उसकी ख़ासियत थी कि साल में वो सिर्फ कुछ ही महीनों के लिए वहां खड़ी होती और कुछ समय बाद उसे हटा दिया जाता…”
उत्सुकता से माही ने जानना चाहा कि कौन सा ख़ास मौका था वो?
“गणेश चतुर्थी! गणेश चतुर्थी से कुछ महीनों पहले उस झोंपड़ी को खड़ा किया जाता था, तीन लोगों का एक परिवार वहां रहने आता… वो लोग वहीं गणेश प्रतिमा बनाने का सारा सामान इकट्ठा करते, जैसे मिट्टी, रंग… फिर घर के तीनों सदस्य मिलकर गणपति जी की प्रतिमा बनाते, मोती सीपियों से उनका सिंहासन सजाते, पेड़ पौधों की हरी पत्तियाँ उनके आसन का आकार बन जाती…”
इतना सुनते ही माही की आँखों में गणपति जी की सुंदर सुंदर तस्वीरें घूमने लगीं।
“गजब का हुनर था उन रंगी पुती उंगलियों में, वैसे तो वो तीनों ही माहिर थे अपने काम में पर मेरे दिल में बस जाती थीं उनकी बेटी की बनाई हर एक मूर्ति। कमाल ये नहीं कि वो हुनरमंद कलाकार थी, कमाल तो उसकी सोच थी… हर साल वो एक सबसे अलग और अनोखी मूर्ति बनाती और उसे कभी कितने भी रुपए पैसों के बदले किसी को भी ना देती सिर्फ अपने पास रखती…”
माही ने बीच में नानी को टोक कर पूछा – “आपने जानने की कोशिश नहीं की नानी कि गुड़िया ऐसा क्यों करती थी?”
“हाँ बिटिया, पूछने पर एक दिन उसने बताया कि माँ कहती है गणपति विघ्नहर्ता हैं और जिस दिन मुझे मेरे गणपति मिल जाएंगे, मैं उनको अपने बनाए गणपति दे दूंगी… १५-१६ साल की छोटी सी उम्र में इतनी समझदारी ना जाने कहां से आ गई थी उसमें…”
अब माही की जिज्ञासा बढ़ने लगी, वो उठ कर बैठ गई और दोनों हाथ घुटनों पर टिकाए, हथेलियाँ ठुड्डी पर जमाकर ध्यान से सुनने लगी।
“एक साल गणेश चतुर्थी से लगभग १५ दिन पहले रिमझिम बरसती फ़ुहारों ने हौले हौले मूसलाधार बारिश का रूप ले लिया… बादलों में जैसे कोई सुराख हो गया हो, हफ्ते भर से ऊपर बीत गया था लेकिन तब भी बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी… गुनगुनाती सुबह और चमकती दोपहरों का नामो निशान ना था, सब स्याह हो गया था, मैं हर सुबह उठकर सबसे पहले बाहरी कमरे की खिड़की से झाँक कर सड़क पार उस बांस की झोंपड़ी को तलाशती जो अब कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी… दिखता था तो सिर्फ रंगों का धब्बा जो पूरी झोंपड़ी तहस नहस होने के बाद ज़मीन पर रह गया था…”
ये सुनकर तो माही का दिल भी ज़ोरों से धड़कने लगा, उसने नानी का हाथ कस कर थाम लिया… नानी ने कहा – “बिल्कुल तुम्हारी जैसी हालत थी मेरी भी तब! घबराहट और बेचैनी थी मन में, सोच सोच कर कलेजा मुँह को आ जाता था कि ना जाने उस छोटे और प्यारे से परिवार के साथ क्या हुआ होगा, पर कैसे पता लगा पाती? उन दिनों इतनी सुविधा नहीं थी कि हर तीसरे घर में फोन हो और एक दूसरे को कॉल कर हाल चाल ले लें या पूछ लें कि बीते कुछ दिनों में क्या उस झोपड़ी में रहने वालों को कहीं आते जाते देखा है? एक सुबह सो कर उठी तो देखा सूरज पिघल कर बिखर गया है आसमान में, भागकर मैंने घर का मेन गेट खोला तो देखा सब तरफ हलचल है, कुछ नेक लोग थे जो लोगों को खाने पीने के कुछ पैकेट, कपड़े और ज़रूरत का सामान देते नजर आ रहे थे…”
माही का मन बस ये सुनने को बेचैन था की गुड़िया का परिवार सुरक्षित था! नानी बोलती जा रहीं थी –
“और पता है माही, मैंने भी कुछ दिनों पहले ऐसे ही कुछ पैकेट बनाए थे ज़रूरतमंदों के लिये! चेहरे देखते नहीं बन रहे थे, इतनी उदासी पसरी थी आस पास… मैंने नज़र घुमा कर देखा तो भीड़ में उठते दो हाथ दिखे, हल्का हल्का नीला पीला रंग मिल कर बदरंग हो गया था उन हाथों में, पर एक सरसरी नज़र में ही मैंने पहचान लिया था उन हुनरमंद और अलग सोच वाले हाथों को, भाग कर मैंने उस बच्ची का हाथ थाम लिया उसके कन्धों पर प्यार भरी थपकी लगाई और पूछा… कैसी हो गुड़िया? उसकी बड़ी बड़ी आँखों में अब भी कुछ अलग ही सोच तैर रही थी और होंठों पर एक मनमोहक मुस्कान, मैं हैरान थी कि इतने दुख तकलीफ़ में भी ये बच्ची यूँ मुस्कुरा रही है! कुछ पूछती इससे पहले ही उसके माँ बाबा भी आ गए और मुझे देख कर ख़ुश हो गए… बहुत से सवाल थे मन में कि आखिर इतने दिन वो कहा थे? कैसे थे? क्या खाया पिया? और… और वो प्रतिमा बनाने का सारा सामान, वो तो बह गया था ना पानी में, तो… कैसे इतना नुकसान होने के बाद अब पटरी पर ला पाएंगे वो अपनी ज़िन्दगी? मैं सवालों के धागों में उलझी हुई थी कि उस बच्ची ने मुझसे कहा, ‘पता है हमें गणपति बप्पा के दर्शन हो गए'”
ये सुनकर कहानी के बीच में ही माही उछल पड़ी। नानी ने कहना जारी रखा… “मैं समझ पाती उससे पहले ही एक सज्जन हाथों में गुड़िया की बनाई गणेश प्रतिमा लिए आए… ये वही थे जिन्होंने बहुत से लोगों को अपने घर के निचले हिस्से में शरण दी थी जब ये मूसलाधार बारिश उनका घर कारोबार उनसे छीन कर तहस नहस कर चुकी थी और इस नेक काम में उनका साथ दिया था उनके कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों ने…”
“वाह नानी! उन्होंने कितना अच्छा काम किया” कहकर माही ने ख़ुशी से तालियां बजा दी।
“गुड़िया ने पनीली आँखों से उन्हें देख कर बताया कि ये मेरी बनाई ऐसी पहली मूर्ति है जो मैंने मेरे परिवार के विघ्नहर्ता गणपति को अर्पित कर दी है और उन्होंने स्वीकार भी कर ली है… उसने कहा – इस साल हमारे सारे विघ्न हर लिए हैं इन्होंने!”
फिर एक बार उस बच्ची ने मेरा दिल जीत लिया था। नानी ने कहानी ख़त्म कर माही को पुकारा तो वो नानी के पल्लू से अपनी ऑंखें पोंछने लगी… “रोना नहीं माही बिटिया, अब तो मुस्कुराना है तुम्हें और बिल्कुल उस नेक दिल इंसान कि तरह बनने की कोशिश करना!”
नानी ने माही को प्यार से गले लगा लिया और दोनों एक साथ बोले – ‘गणपति बप्पा मोरया!’
A writer by passion who loves to munch on hyderabadi biryani. Besides weaving her emotions into a thread of stories, you can always find her in the kitchen mumbling her native pahadi songs while trying new dishes.
Feature Image by – Sunita Prabhu
Sunita is a traveler, amateur sketcher.
8 comments
अति सुंदर👌👌👌👌दिल छू लिया इस प्यारी सी खूबसूरत कहानी ने।❤️❤️👍👍👍
दी ❤️🤗
थैंक्यू छोटी…
अच्छी कहानी माही को सुनाई नानी म्, विघ्नहर्ता पर अटल विश्वास से सराबोर सुन्दर सृजन , हार्दिक बधाई💐
धन्यवाद आदरणीय अंकल जी, आशीर्वाद बनाएं रखे आप सदा..
Thanku so much SUNITA JI for this beautiful artwork
Amazing Story Di….Keep Writing..❤❤👏👏
Thanku bhai…sure..
Very nice Tanu keep it up